Saturday, April 24, 2010

तू क्यों बैठ गया है पथ पर?

ध्येय न हो, पर है मग आगे,
बस धरता चल तू पग आगे,
बैठ न चलनेवालों के दल में तू आज तमाशा बनकर!

तू क्यों बैठ गया है पथ पर?

मानव का इतिहास रहेगा
कहीं, पुकार पुकार कहेगा-
निश्चय था गिर मर जाएगा चलता किंतु रहा जीवन भर!

तू क्यों बैठ गया है पथ पर?

जीवित भी तू आज मरा-सा,
पर मेरी तो यह अभिलाषा-
चिता-निकट भी पहुँच सकूँ मैं अपने पैरों-पैरों चलकर!

तू क्यों बैठ गया है पथ पर? ..

- हरिवंशराय बच्चन.

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