Sunday, July 20, 2014

मेघों से मिल आते थे

बूँदें गिरती जैसे पहली,
डोर पकड़ चढ़ जाते थे
मेघों से मिल आते थे

चिढती अम्मा कुढती काकी
कपडे लेने भागते छत पर
भूल वो सब खिल जाते थे
मेघों से मिल आते थे

बंद किये आँखें, मस्ती में
चकरी जैसे फिरते, चिथड़े
सपने फिर सिल जाते थे
मेघों से मिल आते थे

चाय में गिरते नमक के छींटे
उसी में धोते, उसी में पीते
सूखते रिश्ते फिर गिल जाते थे
मेघों से मिल आते थे

छतरी अब बरसाती, गाडी
मेमसाब, जूते, और साडी
इन्द्रधनुष खिड़की से देखें
बच्चों को कैसे बतलाएं?

डोर पकड़ चढ़ जाते थे
मेघों से मिल आते थे।

- प्रशांत
7.20.14




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ज़ुबान पर ज़ाएका आता था जो सफ़हे पलटने का
अब उँगली ‘क्लिक’ करने से बस इक
झपकी गुज़रती है
बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है परदे पर
किताबों से जो जाती राब्ता था, कट गया है
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे

- Gulzar Saheb।