Thursday, August 5, 2010

ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें

ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें

सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें
दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें

याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से
रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें

हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें

- शहरयार.

2 comments:

  1. First time on your blog. Just saw ur ealier posts. Many of them are the best and classic poems, i grew up with. Good to see them at one place, but was expecting something original also.

    anyways, good effort.

    RESTLESS

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  2. Thanks RESTLESS. I have only recently tried to create something new. Most of it is casual. Hope you'll enjoy it!:-)

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