Tuesday, March 29, 2011

आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.

आधी सी चाय, बाबा का गुस्सा, माँ की फटकार, हँसता हुआ पी ले.

आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.

दूध न आएगा. दफ्तर थम जायेगा. हर इक चौका, चाचा, आँखें भर लाएगा.

दिन दिन के दर्दों को, मुस्का के पी ले.

आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.

कॉलेज बंद सा होगा. हर घर जलसा होगा. पागल से नाचेंगे, कुच्छ ना कल सा होगा.

बीवी को छुट्टी दे, बिटिया को टोफ़ी दे.

आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.

ट्राफिक में घुन घुन के, रिश्वतखोरी सुन के. कुढ़ मत, हंस दे, घर जा.

यह सब कल कर लेना सही रे.

आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.

अल्लाह को, कृष्णा को. आरिफ को, बिसना को.

बल्ला दे, गेंदें दे, जाने दे दलीलें!

आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.

आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.

- Prashant Chopra.

March 29, 2011.