Friday, April 30, 2010

तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले ।

फलक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो ।
फलक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो ।।

तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले ।
तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले ।।

लगाओ हाथ के सूरज सुबह निकाला करे ।
हथेलियों में भरे धूप और उछाला करे ।।

उफ़क़ पे पांव रखो और चलो अकड़ के चलो ।
फ़लक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो ।।

तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले ।
तुम चलो तो हिंदुस्‍तान चले ।।

हिंदुस्‍तान चले ।।।

- गुलज़ार.

2 comments:

  1. वाकई में रगों में रक्त के वेग को बढा देनें वाली कविता है यह...
    फ़िर से पढवानें के लिये धन्यवाद...

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  2. अच्छा लगा सुनके कि आपको पसंद आई. वाकई अदभुत रचना है यह गुलज़ार साहब की. एक ललकार की तरह आपको झिंझोर देती है.

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