फलक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो ।
फलक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो ।।
तुम चलो तो हिंदुस्तान चले ।
तुम चलो तो हिंदुस्तान चले ।।
लगाओ हाथ के सूरज सुबह निकाला करे ।
हथेलियों में भरे धूप और उछाला करे ।।
उफ़क़ पे पांव रखो और चलो अकड़ के चलो ।
फ़लक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो ।।
तुम चलो तो हिंदुस्तान चले ।
तुम चलो तो हिंदुस्तान चले ।।
हिंदुस्तान चले ।।।
- गुलज़ार.
वाकई में रगों में रक्त के वेग को बढा देनें वाली कविता है यह...
ReplyDeleteफ़िर से पढवानें के लिये धन्यवाद...
अच्छा लगा सुनके कि आपको पसंद आई. वाकई अदभुत रचना है यह गुलज़ार साहब की. एक ललकार की तरह आपको झिंझोर देती है.
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