Sunday, July 24, 2016

सुबह

दबे पाँव उतर कर,
चाय की भाप से
घर महकाने वाली ...
हमारी सुबह चली गयी |

चढ़ती धूप की आंच पर,
अलसाई फीकी नींद में
श्लोकों का शहद गिराने वाली ...
हमारी सुबह चली गयी |

उनींदे बचपन पर,
अपनी परछाईं से
सतरंगी धनुष बनाने वाली ...
हमारी सुबह चली गयी ||