Wednesday, January 26, 2011

सौ में अस्सी बेईमान

वो कहता है: "क्यूँ भाई, सौ में अस्सी बेईमान. फिर भी तेरा भारत महान?"

मैंने कहा: "वोह छोटे बेईमान हैं. कुछ सौ, कुछ हज़ार दबाते हैं. पुल गिराते हैं. देर से ऑफिस आते हैं. बिल के लिए, पासपोर्ट के लिए, टिकेट के लिए, अपने बच्चों के लिए, छोटी छोटी खुशियों के लिए, अंत में सब एक दूसरे को ही दे जाते हैं. तुम अपनी देखो भाई: १% बेईमान. पूरी दुनिया का खाते हैं. इसका छुरा लेके उसको तेल पिलाते हैं. अपने ही बच्चों को थमा के बन्दूक, कातिल बनाते हैं. ऊपर से हँसते हैं, पीछे से चाल बिछाते हैं. बूढ़े माँ बाप को assisted living छोड़ आते हैं. बच्चों की शादी में गेस्ट बनके जाते हैं. रखो अपनी नसीहत. अपना घर संभालो. क्यूंकि slumdogs, गरीबी, आबादी, जैसे भी है, आखिर सच्चे है मेरी जान. इसीलिए फिर से सुनले:

मेरा भारत महान."


- प्रशांत चोपरा.

०१/२६/२०११.