Wednesday, November 11, 2015

अब की दिवाली

अब की दिवाली
कुरता, जूते
नए कुछ
रख लाना
नुक्कड़ पर पुरानी पटाखों की जो दुकान है
भीड़ में घुसकर
15 रुपये के सुतली बम परख लाना
आते से
मस्जिद वाले मोड़ पर
इरशाद चचा के थाल से
कुछ मावा बर्फी चख लाना
फीस मांगते बाबू
स्कूल में
अब नहीं सुनते
माँ की, मेरी ...
कुछ रुपये भी रख लाना

15 बरस हुए
तुम्हें देखे
तुम्हारे पैर छुए
तुमसे डांट खाए
तुमसे गले मिले
राह देखती माँ भी
जोड़ा पहने
थाल लिए
चलो वो सब रहने देना
अबकी दिवाली
बाबा
बस
तुम
सीधे घर आ जाना

Wednesday, July 1, 2015

पुरुष होते

पुरुष होते
गर अगर तुम
सिंह से गर्वित निकलते
हर गरजते नारी स्वर को
सिंहनी सा मान देते

ना ही लोमड दल में घुसते
ना ही हाँ में हाँ मिलाते
राष्ट्रवादी दंभ में तुम
ना ही निजी त्रुटियाँ छिपाते

पुरुष होते
गर अगर तुम

स्वयं विधि लिखते, रचाते
समय से पहले समय को
बांधते, और मोड़ लाते  

ना ही प्रभु इच्छा पे रहते
ना किसी से भिक्षा चाहते
भक्ति करते श्रम की केवल
टूटते, और फिर बनाते  

पुरुष होते …

Sunday, April 12, 2015

कैम्पिंग

एक तार का टेंट
दो बोतल पानी की
टुकड़ा टुकड़ा खाके
आग लगा के हाथ सेक के
हम जिसे 'केम्प' कहते हैं,

ज़िन्दगी है लाखों की ...
तीन दफा रोज़
ऐसे ही रहते हैं,
ऐसे ही 'देते' हैं।


- प्रश्।
अप्रैल 11 2015।

Friday, January 9, 2015

बेचैन

क़ब्र (१) से उठा
जाना क़ब्र तक बस
रास्ता दीखता सपट
मगर,
खुदा होने को
सांप बन गया
घूम घूम
लोटे फिरे
मुकुट लगा
मिट्टी का
अकड़े
रोये
कोसे
काटे
बेचैन

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क़ब्र (१): माँ का पेट।