Thursday, July 21, 2011

...मैं क्यूँ इतना बदल गया

इस जिंदगी की दौड़ में, आगे बढ़ने की होड़ में
कितना कुछ पीछे छूट गया, वक़्त हमसे हमको लूट गया,
साँझ ढले जब सांस भर आई, कुछ मुरझाये फूलोँ की खुशबू फिर याद आई,
इस दौड़ में जब भी कदम लडखडाये, वही जाने पहचाने कंधे आगे आये,
साँसे चलती रही मेरी लेकिन मैं जीना भूल गया ,
ये ज़मीं वही थी आसमां वही था जाने मैं क्यू इतना बदल गया ...............

- हेमंत शर्मा.

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