Thursday, July 21, 2011

कुछ अपने से गैर मिले.

वक्त के कारवां से एक लम्हा अपने लिए चुराया,
कुछ रूठी हुई यादों को मनाया,
दिल के उस कमरे को खोला जो बरसों से बंद था,
वहाँ कुच्छ किताबें थी जिन पर धूल चढ़ी थी,
उनमे कुछ सूखे फूल मिले,
कुच्छ धुंधले से नाम मिले,
कुच्छ रिश्तों कि डोर मिली,
एक भूली तस्वीर मिली,
कुच्छ हँसते से होठ मिले,
कुछ रोते से नैन मिले,
कुछ सोये अरमान मिले,
कुछ अपने से गैर मिले.

- हेमंत शर्मा.

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