Saturday, April 24, 2010

आज नदी बिलकुल उदास थी.

आज नदी बिलकुल उदास थी।

सोयी थी अपने पानी में,

उसके दर्पण पर -

बादल का वस्त्र पड़ा था।

मैंने उसे नहीं जगाया,

दबे पाँव घर वापस आया।

- केदारनाथ अग्रवाल.

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