बहुत घुटन है, बन्द घरों में,
खुली हवा तो आने दो,
संशय की खिड़कियाँ खोल दो,
किरनों को मुस्काने दो!
ऊँचे-ऊँचे भवन उठ रहे,
पर आँगन का नाम नहीं,
चमक-दमक, आपा-धापी है,
पर जीवन का नाम नहीं!
लौट न जाए सूर्य द्वार से,
नया संदेशा लाने दो!
बहुत घुटन है...
हर माँ अपना राम जोहती,
कटता क्यों बनवास नहीं?
मेहनत की सीता भी भूखी,
रुकता क्यों उपवास नहीं?
बाबा की सूनी आँखों में
चुभता तिमिर भगाने दो,
बहुत घुटन है...
हर उदास राखी गुहारती,
भाई का वह प्यार कहाँ?
डरे-डरे रिश्ते भी कहते
अपनों का संसार कहाँ?
गुमसुम गलियों में मिलनों की,
खुशबू तो बिखराने दो,
बहुत घुटन है, बन्द घरों में,
खुली हवा तो आने दो!
- राधेश्याम बंधु.
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