Friday, January 13, 2012

कल एक बुत से मिला मैं...

एक बुत से मिला मैं.

वह मुस्कुरा रहा था...
और मैं,
नज़रें न मिला पा रहा था.

हाथ फेरा सर पे मेरे,
और पलटा, जाने लगा.

"रुको.....", मैं चीखा...
किन्तु वह न रुका.

जाते जाते, एक बयार दे गया.
बस इतनी, कि उसकी खुशबू मात्र शेष रही.
और जान गया मैं... विकल हो रोने लगा:

"माँ ............."

- प्रशांत. १.१३.२०१२.

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