एक बुत से मिला मैं.
वह मुस्कुरा रहा था...
और मैं,
नज़रें न मिला पा रहा था.
हाथ फेरा सर पे मेरे,
और पलटा, जाने लगा.
"रुको.....", मैं चीखा...
किन्तु वह न रुका.
जाते जाते, एक बयार दे गया.
बस इतनी, कि उसकी खुशबू मात्र शेष रही.
और जान गया मैं... विकल हो रोने लगा:
"माँ ............."
- प्रशांत. १.१३.२०१२.
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