Tuesday, January 31, 2012

जीत.

यूँ लड़ता रहा,
सब वार गया.

बस जीत मिली,
तुझे हार गया.

- प्रश्. 1.30.2012.

Thursday, January 19, 2012

जो आये ले जाए...

मैले कपडे,
कुचली आँखें,
कुकडे अकड़े हाथ.

एक रात,
हमने भी गुजारी,
उस पगली के साथ.

सहमी, हकली,
वहशी कुम्हली,
सिसक फफक बस रोई.

63 बरस,
करोड़ों चीखें,
पर चीर भरे न कोई!

बेटी थी,
अब बहु कहें, बस..
हक, जता, टूर जाएँ..

वेलेंटाइन डे,
सभी मना लें,
२६ छुट्टी मनाएं.

क्या कसाब,
क्या पप्पू, गांधी,
जो आये ले जाए...

लड्डू संग,
बंटेगा गणतंत्र,
जो भी मिले, बताएं!

- प्रशांत. १.१९.२०१२.
गणतंत्र दिवस, जनवरी २६ पर.

Friday, January 13, 2012

बरस पड़ी लू ...

कठिन. कर्कश. कैकय.

दंश जो भरा था मैंने,
निर्मम उस नगर में,
छीन कर जीने के लिए.

कुछ न शेष रहा.

कांटे कुम्हलाये ...
बरस पड़ी लू ...
सर्वस्व गया झूम.

जलती उस दुपहरी,
उड़ता दुपट्टा लिए,
चौराहे की भीड़ में,

जब मुझको मिली..

"तुम"

- प्रशांत.

देख न सका उनमें...

कल दो आँखों से मिला मैं.
पर देख न सका उनमें.
और खुद झुक गया.

सर्वस्व.
सत्-गुण.
सर्व सीमित सुख.
सब कुछ देकर,
जो शेष रहा,
वह थी दो आँखें...

..पर देख न सका उनमें.
और खुद झुक गया.

आखिर...

माँ की जो थी.

- प्रश्. १.१३.२०१२.

कल एक बुत से मिला मैं...

एक बुत से मिला मैं.

वह मुस्कुरा रहा था...
और मैं,
नज़रें न मिला पा रहा था.

हाथ फेरा सर पे मेरे,
और पलटा, जाने लगा.

"रुको.....", मैं चीखा...
किन्तु वह न रुका.

जाते जाते, एक बयार दे गया.
बस इतनी, कि उसकी खुशबू मात्र शेष रही.
और जान गया मैं... विकल हो रोने लगा:

"माँ ............."

- प्रशांत. १.१३.२०१२.

मर जाता हूँ मैं!

जब भी बिन आंटे, रोटी के घर जाता हूँ मैं,
मुस्कुरा देती है बिटिया, और मर जाता हूँ मैं.

- इन्टरनेट के एक अज्ञात शेर से प्रेरित. उन घरों को समर्पित जहाँ बच्चे आज भी इसलिए जल्दी सो जाते हैं कि भूख लग जायेगी.

Tuesday, January 10, 2012

खट्टा.

ज़ख्मों का हिसाब रखते रखते,
अपने तो दिमाग का दही हो गया.

ता उम्र दूध दूध चिल्लाता फिरा...

अब खट्टा ही जो भाने लगा,
सब साला सही हो गया!!!

- प्रशांत. १.१०.१२.

Wednesday, January 4, 2012

हक चाहिए उसे...

हक चाहिए उसे,
विवाहित से प्यार का...
समाज से लड़ने का..
कोंस्टेबल से अकड़ने का.

कैसे बताएं बावले को ..
तुझ जैसे को मिलने लगें हक, तो

हर युवा में एक अन्ना जलता..
हर झुग्गी में एक जिम मोर्रिसन पलता...

और हर कसाब के आगे, एक जिंदा भगत सिंह चलता.

एक माँ नहीं पलती.

वह धोती में आया, इक राष्ट्र खिला गया,
इस डेनिम जेनरेशन से एक माँ नहीं पलती.

वह नंगा था आधा, पर उत्तम था मानुष..
अब ढकता सब है, मर्यादा नहीं ढकती.