तब सालों का ज़मीर जागता है?
क्यूँ गाँधी और अन्ना के बगैर सारे बकरियों की तरह इधर उधर भागते हैं?
कब तक कृष्ण और राम के भरोसे देश चलेगा?
पढाओ अपने बच्चों को... जो मिले उन्हें भी बताओ.
१२१ करोड में कम स कम १ लाख तो वीर बनाओ?
- प्रश्. ८/१८/२०११.
खैर तो सबसे मिली, मांगे न मांगे, ए वली, (खैर = भीख, वली = औलिया)
तेरे घर से मगर आये, तो गज़ल होती है!
जून की तपती दुपहरी में झुलसते चलते,
कोई शरबत जो दिखाए, तो गज़ल होती है!
बड़ी मुश्किल से हो सोया जो तेरा लख्त-ए-जिगर, (लख्त-ए-जिगर = जिगर का टुकड़ा, बच्चा)
उसे इक छींक जगाए, तो गज़ल होती है!
सुभा हो शाम हो, पढ़ते रहो तुम जंग-ओ-जहद,
परचा विज्ञान का आये, तो गज़ल होती है!
उमर लिहाज औ कपडे, किये खिजाब से गुल, (खिजाब: रंग, मेंह्न्दी)
तब भी वो 'चाचा' बुलाए, तो गज़ल होती है!
एक बस तुम हो, औ वो हों, चले जब 'लिफ्ट' का सफर,
बिना आवाज़ बू आये, तो गज़ल होती है!
- प्राश 'बुडबक्क' ट्राश्.
५/१७/२०११.(Released under GNU Public License. Readers may distribute it, but must share any modifications with the original author.:-)
आधी सी चाय, बाबा का गुस्सा, माँ की फटकार, हँसता हुआ पी ले.
आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.
दूध न आएगा. दफ्तर थम जायेगा. हर इक चौका, चाचा, आँखें भर लाएगा.
दिन दिन के दर्दों को, मुस्का के पी ले.
आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.
कॉलेज बंद सा होगा. हर घर जलसा होगा. पागल से नाचेंगे, कुच्छ ना कल सा होगा.
बीवी को छुट्टी दे, बिटिया को टोफ़ी दे.
आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.
ट्राफिक में घुन घुन के, रिश्वतखोरी सुन के. कुढ़ मत, हंस दे, घर जा.
यह सब कल कर लेना सही रे.
आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.
अल्लाह को, कृष्णा को. आरिफ को, बिसना को.
बल्ला दे, गेंदें दे, जाने दे दलीलें!
आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.
आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.
- Prashant Chopra.
March 29, 2011.
वो कहता है: "क्यूँ भाई, सौ में अस्सी बेईमान. फिर भी तेरा भारत महान?"
मैंने कहा: "वोह छोटे बेईमान हैं. कुछ सौ, कुछ हज़ार दबाते हैं. पुल गिराते हैं. देर से ऑफिस आते हैं. बिल के लिए, पासपोर्ट के लिए, टिकेट के लिए, अपने बच्चों के लिए, छोटी छोटी खुशियों के लिए, अंत में सब एक दूसरे को ही दे जाते हैं. तुम अपनी देखो भाई: १% बेईमान. पूरी दुनिया का खाते हैं. इसका छुरा लेके उसको तेल पिलाते हैं. अपने ही बच्चों को थमा के बन्दूक, कातिल बनाते हैं. ऊपर से हँसते हैं, पीछे से चाल बिछाते हैं. बूढ़े माँ बाप को assisted living छोड़ आते हैं. बच्चों की शादी में गेस्ट बनके जाते हैं. रखो अपनी नसीहत. अपना घर संभालो. क्यूंकि slumdogs, गरीबी, आबादी, जैसे भी है, आखिर सच्चे है मेरी जान. इसीलिए फिर से सुनले:
मेरा भारत महान."
- प्रशांत चोपरा.
०१/२६/२०११.