Thursday, August 18, 2011

१२१ करोड में कम स कम १ लाख तो वीर बनाओ?

क्यूँ हर वो चीज़ जो पूरे समाज को खा रही है...

पहले त्रासदी बनती है...

फिर अवतार की प्रतीक्षा होती है,

तब सालों का ज़मीर जागता है?

क्यूँ गाँधी और अन्ना के बगैर सारे बकरियों की तरह इधर उधर भागते हैं?

कब तक कृष्ण और राम के भरोसे देश चलेगा?

पढाओ अपने बच्चों को... जो मिले उन्हें भी बताओ.

१२१ करोड में कम स कम १ लाख तो वीर बनाओ?

- प्रश्. ८/१८/२०११.

हम उनमें खादी अपनी सुखाया करते हैं!

जो तूफान ताज-ए-हुकूमत उडाया करते हैं,
हम उनमें खादी अपनी सुखाया करते हैं!

सत्यमेव जयते!

- प्रशांत. ८/१७/२०११. (इन्टरनेट/ समाचारों से प्रेरित)

Tuesday, July 26, 2011

जिस पल तू इस दिल के पास होती है|

जब जब ये आँखे उदास होती है,

तू इस दिल के पास होती है|


जब जब खुशियों से मुलाकात होती है,

तू इस दिल के पास होती है|


कभी कोई आंसू तेरी यादों के झरने से बह जाता है,

कभी इन होठों को तेरी हंसी की तलाश होती है|


उस एक पल में जी लेता हु मैं सारी उमर,

जिस पल तू इस दिल के पास होती है|


- हेमंत शर्मा.


Thursday, July 21, 2011

कुछ अपने से गैर मिले.

वक्त के कारवां से एक लम्हा अपने लिए चुराया,
कुछ रूठी हुई यादों को मनाया,
दिल के उस कमरे को खोला जो बरसों से बंद था,
वहाँ कुच्छ किताबें थी जिन पर धूल चढ़ी थी,
उनमे कुछ सूखे फूल मिले,
कुच्छ धुंधले से नाम मिले,
कुच्छ रिश्तों कि डोर मिली,
एक भूली तस्वीर मिली,
कुच्छ हँसते से होठ मिले,
कुछ रोते से नैन मिले,
कुछ सोये अरमान मिले,
कुछ अपने से गैर मिले.

- हेमंत शर्मा.

...मैं क्यूँ इतना बदल गया

इस जिंदगी की दौड़ में, आगे बढ़ने की होड़ में
कितना कुछ पीछे छूट गया, वक़्त हमसे हमको लूट गया,
साँझ ढले जब सांस भर आई, कुछ मुरझाये फूलोँ की खुशबू फिर याद आई,
इस दौड़ में जब भी कदम लडखडाये, वही जाने पहचाने कंधे आगे आये,
साँसे चलती रही मेरी लेकिन मैं जीना भूल गया ,
ये ज़मीं वही थी आसमां वही था जाने मैं क्यू इतना बदल गया ...............

- हेमंत शर्मा.

Tuesday, May 17, 2011

... तो गज़ल होती है!

खैर तो सबसे मिली, मांगे न मांगे, ए वली, (खैर = भीख, वली = औलिया)

तेरे घर से मगर आये, तो गज़ल होती है!


जून की तपती दुपहरी में झुलसते चलते,

कोई शरबत जो दिखाए, तो गज़ल होती है!


बड़ी मुश्किल से हो सोया जो तेरा लख्त-ए-जिगर, (लख्त-ए-जिगर = जिगर का टुकड़ा, बच्चा)

उसे इक छींक जगाए, तो गज़ल होती है!


सुभा हो शाम हो, पढ़ते रहो तुम जंग-ओ-जहद,

परचा विज्ञान का आये, तो गज़ल होती है!


उमर लिहाज औ कपडे, किये खिजाब से गुल, (खिजाब: रंग, मेंह्न्दी)

तब भी वो 'चाचा' बुलाए, तो गज़ल होती है!


एक बस तुम हो, औ वो हों, चले जब 'लिफ्ट' का सफर,

बिना आवाज़ बू आये, तो गज़ल होती है!

- प्राश 'बुडबक्क' ट्राश्.

५/१७/२०११.(Released under GNU Public License. Readers may distribute it, but must share any modifications with the original author.:-)

Thursday, April 14, 2011

अब न कुच्छ मीठा रहा!

अब न कुछ मीठा रहा.

दोस्तों के शहर में, गुमशुदा जीता रहा,
हाथ में कुरान -बाइबल, ढूँढता गीता रहा!

इम्तिहान-ए-वक्त से, एक मैं, एक तू थे घायल,
तू अलग पीती रही, मैं अलग पीता रहा!

ऐसे बदले लोग, जंगल, वो गली और रास्ते,
आम चूसे, पान चाबे, अब न कुछ मीठा रहा!

दोस्तों के शहर में, गुमशुदा जीता रहा,
हाथ में कुरान -बाइबल, ढूँढता गीता रहा!

- Prash 'बुडबक' Trash. (प्रशांत)

Tuesday, March 29, 2011

आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.

आधी सी चाय, बाबा का गुस्सा, माँ की फटकार, हँसता हुआ पी ले.

आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.

दूध न आएगा. दफ्तर थम जायेगा. हर इक चौका, चाचा, आँखें भर लाएगा.

दिन दिन के दर्दों को, मुस्का के पी ले.

आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.

कॉलेज बंद सा होगा. हर घर जलसा होगा. पागल से नाचेंगे, कुच्छ ना कल सा होगा.

बीवी को छुट्टी दे, बिटिया को टोफ़ी दे.

आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.

ट्राफिक में घुन घुन के, रिश्वतखोरी सुन के. कुढ़ मत, हंस दे, घर जा.

यह सब कल कर लेना सही रे.

आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.

अल्लाह को, कृष्णा को. आरिफ को, बिसना को.

बल्ला दे, गेंदें दे, जाने दे दलीलें!

आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.

आज, उठ पगले, बस. थोडा सा जी ले.

- Prashant Chopra.

March 29, 2011.

Wednesday, January 26, 2011

सौ में अस्सी बेईमान

वो कहता है: "क्यूँ भाई, सौ में अस्सी बेईमान. फिर भी तेरा भारत महान?"

मैंने कहा: "वोह छोटे बेईमान हैं. कुछ सौ, कुछ हज़ार दबाते हैं. पुल गिराते हैं. देर से ऑफिस आते हैं. बिल के लिए, पासपोर्ट के लिए, टिकेट के लिए, अपने बच्चों के लिए, छोटी छोटी खुशियों के लिए, अंत में सब एक दूसरे को ही दे जाते हैं. तुम अपनी देखो भाई: १% बेईमान. पूरी दुनिया का खाते हैं. इसका छुरा लेके उसको तेल पिलाते हैं. अपने ही बच्चों को थमा के बन्दूक, कातिल बनाते हैं. ऊपर से हँसते हैं, पीछे से चाल बिछाते हैं. बूढ़े माँ बाप को assisted living छोड़ आते हैं. बच्चों की शादी में गेस्ट बनके जाते हैं. रखो अपनी नसीहत. अपना घर संभालो. क्यूंकि slumdogs, गरीबी, आबादी, जैसे भी है, आखिर सच्चे है मेरी जान. इसीलिए फिर से सुनले:

मेरा भारत महान."


- प्रशांत चोपरा.

०१/२६/२०११.