ध्येय न हो, पर है मग आगे,
बस धरता चल तू पग आगे,
बैठ न चलनेवालों के दल में तू आज तमाशा बनकर!
तू क्यों बैठ गया है पथ पर?
मानव का इतिहास रहेगा
कहीं, पुकार पुकार कहेगा-
निश्चय था गिर मर जाएगा चलता किंतु रहा जीवन भर!
तू क्यों बैठ गया है पथ पर?
जीवित भी तू आज मरा-सा,
पर मेरी तो यह अभिलाषा-
चिता-निकट भी पहुँच सकूँ मैं अपने पैरों-पैरों चलकर!
तू क्यों बैठ गया है पथ पर? ..
- हरिवंशराय बच्चन.
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