Sunday, July 20, 2014

मेघों से मिल आते थे

बूँदें गिरती जैसे पहली,
डोर पकड़ चढ़ जाते थे
मेघों से मिल आते थे

चिढती अम्मा कुढती काकी
कपडे लेने भागते छत पर
भूल वो सब खिल जाते थे
मेघों से मिल आते थे

बंद किये आँखें, मस्ती में
चकरी जैसे फिरते, चिथड़े
सपने फिर सिल जाते थे
मेघों से मिल आते थे

चाय में गिरते नमक के छींटे
उसी में धोते, उसी में पीते
सूखते रिश्ते फिर गिल जाते थे
मेघों से मिल आते थे

छतरी अब बरसाती, गाडी
मेमसाब, जूते, और साडी
इन्द्रधनुष खिड़की से देखें
बच्चों को कैसे बतलाएं?

डोर पकड़ चढ़ जाते थे
मेघों से मिल आते थे।

- प्रशांत
7.20.14




क्लिक

ज़ुबान पर ज़ाएका आता था जो सफ़हे पलटने का
अब उँगली ‘क्लिक’ करने से बस इक
झपकी गुज़रती है
बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है परदे पर
किताबों से जो जाती राब्ता था, कट गया है
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे

- Gulzar Saheb।

Monday, June 16, 2014

कमीज।

"नफरत है मुझे तुमसे ... ", सेंडी ने नयी आयातित कमीज़ माँ के मुंह पर फेंकी, और दरवाज़ा मारकर निकल गयी।

कुच्छ हज़ार मील दूर, फातिमा ने रात की इक्कीसवीं कमीज़ सिली, 45 टका दुपट्टे में बांधे, और एक अंग्रेजी अख़बार लेने निकल पड़ी - आखिर अव्वल आती बिटिया को विलायती तौर जो सिखाना है!

- अति लघु कथा
प्रशांत, 6/16/14.

Sunday, February 23, 2014

रक्त बिंदु ...

रक्त बिंदु, रक्त दे मन ले गया.
श्वास है बस, ये क्या जीवन रह गया?

- हर उस माँ के लिए जो शाश्वत प्रभु रूप है इस धरती पर.
प्रशांत.

Tuesday, February 11, 2014

बेवजह.

मुस्कुराना चाहता हूँ, बेवजह.
बचपन सजाना चाहता हूँ, बेवजह.

रो रहा जो घर गिरा के रेत का,
उसको हँसाना चाहता हूँ, बेवजह.

- prash.