Wednesday, July 1, 2015

पुरुष होते

पुरुष होते
गर अगर तुम
सिंह से गर्वित निकलते
हर गरजते नारी स्वर को
सिंहनी सा मान देते

ना ही लोमड दल में घुसते
ना ही हाँ में हाँ मिलाते
राष्ट्रवादी दंभ में तुम
ना ही निजी त्रुटियाँ छिपाते

पुरुष होते
गर अगर तुम

स्वयं विधि लिखते, रचाते
समय से पहले समय को
बांधते, और मोड़ लाते  

ना ही प्रभु इच्छा पे रहते
ना किसी से भिक्षा चाहते
भक्ति करते श्रम की केवल
टूटते, और फिर बनाते  

पुरुष होते …