पुरुष होते
गर अगर तुम
सिंह से गर्वित निकलते
हर गरजते नारी स्वर को
सिंहनी सा मान देते
ना ही लोमड दल में घुसते
ना ही हाँ में हाँ मिलाते
राष्ट्रवादी दंभ में तुम
ना ही निजी त्रुटियाँ छिपाते
पुरुष होते
गर अगर तुम
स्वयं विधि लिखते, रचाते
समय से पहले समय को
बांधते, और मोड़ लाते
ना ही प्रभु इच्छा पे रहते
ना किसी से भिक्षा चाहते
भक्ति करते श्रम की केवल
टूटते, और फिर बनाते
पुरुष होते …
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