नीड का निर्माण फिर फिर,
नेह का आह्वान फिर फिर!
वह उठी आँधी कि नभ में, छा गया सहसा अंधेरा,
धूलि धूसर बादलों नें, भूमि को इस भाँति घेरा,
रात सा दिन हो गया, फिर रात आयी और काली
लग रहा था अब न होगा इस निशा का फिर सवेरा
रात के उत्पात भय से भीत जन-जन, भीत कण कण,
किंतु प्राची से उषा की मोहिनी मुस्कान फिर फिर
नीड का निर्माण फिर फिर,
नेह का आह्वान फिर फिर!
- डा. हरिवंश राय बच्चन
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