सिंधुतट की बालुका पर जब लिखा मैंने तुम्हारा नाम
याद है, तुम हंस पड़ी थी 'क्या तमाशा है !
लिख रहे हो इस तरह तन्मय
की जैसे लिख रहे होओ शिला पर |
मानती हूँ, यह मधुर अंकन अमरता पा सकेगा |
वायु की क्या बात ? इसको सिंधु भी न मिटा सकेगा |'
और तबसे नाम मैंने है लिखा ऐसे
कि, सचमुच, सिंधु कि लहरें न उसको पाएंगी,
फूल में सौरभ, तुम्हारा नाम मेरे गीत में है |
विश्व में यह गीत फैलेगा
अजन्मी पीढियाँ सुख से
तुम्हारे नाम को दुहराएंगी |
- रामधारी सिंह दिनकर
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