Sunday, May 3, 2020

गुमशुदा


वो अलग पीते रहे, मैं अलग पीता रहा
दोस्तोँ के शहर में, गुमशुदा जीता रहा


खेल कहके तूने जिसको आज तक फेंका उछाला
ज़िन्दगी थी वो मेरी, फटती रही, सीता रहा!

Sunday, July 24, 2016

सुबह

दबे पाँव उतर कर,
चाय की भाप से
घर महकाने वाली ...
हमारी सुबह चली गयी |

चढ़ती धूप की आंच पर,
अलसाई फीकी नींद में
श्लोकों का शहद गिराने वाली ...
हमारी सुबह चली गयी |

उनींदे बचपन पर,
अपनी परछाईं से
सतरंगी धनुष बनाने वाली ...
हमारी सुबह चली गयी ||

Wednesday, November 11, 2015

अब की दिवाली

अब की दिवाली
कुरता, जूते
नए कुछ
रख लाना
नुक्कड़ पर पुरानी पटाखों की जो दुकान है
भीड़ में घुसकर
15 रुपये के सुतली बम परख लाना
आते से
मस्जिद वाले मोड़ पर
इरशाद चचा के थाल से
कुछ मावा बर्फी चख लाना
फीस मांगते बाबू
स्कूल में
अब नहीं सुनते
माँ की, मेरी ...
कुछ रुपये भी रख लाना

15 बरस हुए
तुम्हें देखे
तुम्हारे पैर छुए
तुमसे डांट खाए
तुमसे गले मिले
राह देखती माँ भी
जोड़ा पहने
थाल लिए
चलो वो सब रहने देना
अबकी दिवाली
बाबा
बस
तुम
सीधे घर आ जाना

Wednesday, July 1, 2015

पुरुष होते

पुरुष होते
गर अगर तुम
सिंह से गर्वित निकलते
हर गरजते नारी स्वर को
सिंहनी सा मान देते

ना ही लोमड दल में घुसते
ना ही हाँ में हाँ मिलाते
राष्ट्रवादी दंभ में तुम
ना ही निजी त्रुटियाँ छिपाते

पुरुष होते
गर अगर तुम

स्वयं विधि लिखते, रचाते
समय से पहले समय को
बांधते, और मोड़ लाते  

ना ही प्रभु इच्छा पे रहते
ना किसी से भिक्षा चाहते
भक्ति करते श्रम की केवल
टूटते, और फिर बनाते  

पुरुष होते …

Sunday, April 12, 2015

कैम्पिंग

एक तार का टेंट
दो बोतल पानी की
टुकड़ा टुकड़ा खाके
आग लगा के हाथ सेक के
हम जिसे 'केम्प' कहते हैं,

ज़िन्दगी है लाखों की ...
तीन दफा रोज़
ऐसे ही रहते हैं,
ऐसे ही 'देते' हैं।


- प्रश्।
अप्रैल 11 2015।

Friday, January 9, 2015

बेचैन

क़ब्र (१) से उठा
जाना क़ब्र तक बस
रास्ता दीखता सपट
मगर,
खुदा होने को
सांप बन गया
घूम घूम
लोटे फिरे
मुकुट लगा
मिट्टी का
अकड़े
रोये
कोसे
काटे
बेचैन

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क़ब्र (१): माँ का पेट।


Sunday, July 20, 2014

मेघों से मिल आते थे

बूँदें गिरती जैसे पहली,
डोर पकड़ चढ़ जाते थे
मेघों से मिल आते थे

चिढती अम्मा कुढती काकी
कपडे लेने भागते छत पर
भूल वो सब खिल जाते थे
मेघों से मिल आते थे

बंद किये आँखें, मस्ती में
चकरी जैसे फिरते, चिथड़े
सपने फिर सिल जाते थे
मेघों से मिल आते थे

चाय में गिरते नमक के छींटे
उसी में धोते, उसी में पीते
सूखते रिश्ते फिर गिल जाते थे
मेघों से मिल आते थे

छतरी अब बरसाती, गाडी
मेमसाब, जूते, और साडी
इन्द्रधनुष खिड़की से देखें
बच्चों को कैसे बतलाएं?

डोर पकड़ चढ़ जाते थे
मेघों से मिल आते थे।

- प्रशांत
7.20.14




क्लिक

ज़ुबान पर ज़ाएका आता था जो सफ़हे पलटने का
अब उँगली ‘क्लिक’ करने से बस इक
झपकी गुज़रती है
बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है परदे पर
किताबों से जो जाती राब्ता था, कट गया है
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे

- Gulzar Saheb।

Monday, June 16, 2014

कमीज।

"नफरत है मुझे तुमसे ... ", सेंडी ने नयी आयातित कमीज़ माँ के मुंह पर फेंकी, और दरवाज़ा मारकर निकल गयी।

कुच्छ हज़ार मील दूर, फातिमा ने रात की इक्कीसवीं कमीज़ सिली, 45 टका दुपट्टे में बांधे, और एक अंग्रेजी अख़बार लेने निकल पड़ी - आखिर अव्वल आती बिटिया को विलायती तौर जो सिखाना है!

- अति लघु कथा
प्रशांत, 6/16/14.

Sunday, February 23, 2014

रक्त बिंदु ...

रक्त बिंदु, रक्त दे मन ले गया.
श्वास है बस, ये क्या जीवन रह गया?

- हर उस माँ के लिए जो शाश्वत प्रभु रूप है इस धरती पर.
प्रशांत.

Tuesday, February 11, 2014

बेवजह.

मुस्कुराना चाहता हूँ, बेवजह.
बचपन सजाना चाहता हूँ, बेवजह.

रो रहा जो घर गिरा के रेत का,
उसको हँसाना चाहता हूँ, बेवजह.

- prash.

Tuesday, December 17, 2013

अक्स.

मुझसे मिलके, मेरा अक्स ले गया |
बाजीगर था, दिल जो शख्श ले गया ||

- प्रशांत.
12.17.13

Friday, May 10, 2013

गर्मी.


अलसायी धूप,
दसहरी आम.

चाय की चुस्की,
शरबत की शाम.

हाथ का गिरना.
ढुलना.
ढुलते ही जाना.

शायद,
पत्तों में,
बादल पे,
चुपके से,
आ पहुंची है,

गर्मी.



प्रशांत.
माय १०, २०१३.


Monday, April 22, 2013

Phool.

Ek waqt tha.

Phool soonghnei baagon mein jaate the,
Nangey pair ghaas par lot.te the,
Daud lagaate the.

Aaj phoolon se allergy hai.
Ghaas mein potty padi kutton ki...

Bas ek wohi asli,
Baki sab ssaala farzee hai:-(

PrashOriginal.

Sunday, December 16, 2012

Aao.

Aao, baitho.
Fir baat chhide.
Kuchch zindagi ki,
Kuchch pyaar ki.
Kuchch monsoon,
Bauchaar ki.

Aaa, baitho.
Fir raag chhide.
Kuchch dard ke,
Kuchch tyaag ke.
Kuchch chhipe, dabe,
Anurag ke.

Aaa, baitho.
Fir waqt ruke.
Kuchch baadal mein,
Kuchch dhoop mein.
Kuchch saral, madir,
Tere roop mein.

Aao...:-)

- PrashOriginal.
12.16.12.